Friday, August 21, 2015

मोहब्बतें - ए - अंजाम

मोहब्बतें - - अंजाम

कुछ ख्वाइशें दबाएं बैठें हैं आस के अँधेरे में अबतक टुटा हर मंज़र - - ख्वाब रुख्शत हुए
बैठें हैं अबतक 

क्या सोचा था आपका साया लेकर क्या बोया था आपका सहारा लेकर अब आशुओं से सीचना पड़ेगा दो
बून्द उधार लेकर

क्यूँ आप समझे नहीं या येह समाज आपको समझा नहीं हमसे होकर जो डरते हो कुछ टूटे हुए रिवाजों
और पाखंडों का जहर पीकर

क्यूँ रुखसत करदेते हो हमे हमेशा बहाना देकर उन झूठे दुनिया के हवाले देकर

हम टूटते हुए अफ्शानें में जीलेंगे यूहीं हस हस कर पर शायद वह देख रहा होगा सिसक सीसकर

क्या पायाथा उस खुदा से हमने उसे लौटाने का वक़्त आया है मुझे इस ज़िन्दगी से पहली बार रुखसत होने
का पैगाम आया है

एक सवाल पर उसके बाद भी होता है क्या बनाया है तुमने येह खुदाई का अजीब नमूना दुनिया का कमबख्त प्यार कहतें हैं येह कहकर के सच्चा तेरा ईमान है और खत्तले - आम कर के बेजुबान होजाते

बिना कुछ कहें रुख्सते आम बनकर